March 30, 2025

 

हिंदुस्तान के मशहूर शायर जनाब अज़्म शाकिरी साहब की एक खूबसूरत सी ग़ज़ल...शायरी-पसंद लोगों के लिए ...

लाखों सदमें ढेरों ग़म।
फिर भी नहीं हैं आंखें नम।।
 
इक मुद्दत से रोए नहीं,
क्या पत्थर के हो गए हम।।
यूं पलकों पे हैं आँसू,
जैसे फूलों पर शबनम।।
 
ख़्वाब में वो आ जाते हैं,
इतना तो रखते हैं भरम।।
हम उस बस्ती में हैं जहाँ,
धूप ज़ियादा साये कम।।
 
अब ज़ख्मों में ताब नहीं,
अब क्यों लाए हो मरहम।।

-अज़्म शाकिरी

February 06, 2025

 

जितने अपने थे सब पराये थे

जितने अपने थे, सब पराये थे,
हम हवा को गले लगाए थे.

जितनी कसमे थी, सब थी शर्मिंदा,
जितने वादे थे, सर झुकाये थे.

जितने आंसू थे, सब थे बेगाने,
जितने मेहमां थे, बिन बुलाए थे.

सब किताबें पढ़ी-पढ़ाई थीं,
सारे किस्से सुने-सुनाए थे.

एक बंजर जमीं के सीने में,
मैने कुछ आसमां उगाए थे.

सिर्फ दो घूंट प्यास कि खातिर,
उम्र भर धूप मे नहाए थे.

हाशिए पर खड़े हूए है हम,
हमने खुद हाशिए बनाए थे.

मैं अकेला उदास बैठा था,
सामने कहकहे लगाए थे.

है गलत उसको बेवफा कहना,
हम कौन सा धुले-धुलाए थे.

आज कांटो भरा मुकद्दर है,
हमने गुल भी बहुत खिलाए थे.
-
डॉ राहत इंदौरी